अकेले मोदी फैक्टर से मुश्किल है राज्यों में जीत, उपचुनाव के नतीजों से सबक लेगी भाजपा?

यंग भारत ब्यूरो
देश की तीन लोकसभा सीटों और 13 राज्यों की 29 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी को निश्चित तौर पर चौंकाया होगा। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक ब्रांड मोदी के नाम पर चुनाव लड़ती आई भारतीय जनता पार्टी को ये नतीजे इस बात पर अब सोचने को मजबूर करेंगे कि आखिर अकेले मोदी फैक्टर से भगवा पार्टी कब तक राज्यों में जीतती रहेगी, क्या ब्रांड मोदी के अलावा अब राज्यों में मजबूत लीडरशिप पर भी ध्यान देने की जरूरत है। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र से लेकर असम और मध्य प्रदेश तक में जिस तरह से नतीजे देखने को मिले, उसने यह इशारा कर दिया है कि अगर भाजपा राज्यों में लीडरशिप को मजबूत करने पर ध्यान नहीं देती है तो फिर मोदी फैक्टर ज्यादा दिनों तक उसे सत्ता की कुर्सी पर नहीं बैठा सकती।
देश की तीन लोकसभा सीटों और 13 राज्यों की 29 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी को निश्चित तौर पर चौंकाया होगा। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक ब्रांड मोदी के नाम पर चुनाव लड़ती आई भारतीय जनता पार्टी को ये नतीजे इस बात पर अब सोचने को मजबूर करेंगे कि आखिर अकेले मोदी फैक्टर से भगवा पार्टी कब तक राज्यों में जीतती रहेगी, क्या ब्रांड मोदी के अलावा अब राज्यों में मजबूत लीडरशिप पर भी ध्यान देने की जरूरत है। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र से लेकर असम और मध्य प्रदेश तक में जिस तरह से नतीजे देखने को मिले, उसने यह इशारा कर दिया है कि अगर भाजपा राज्यों में लीडरशिप को मजबूत करने पर ध्यान नहीं देती है तो फिर मोदी फैक्टर ज्यादा दिनों तक उसे सत्ता की कुर्सी पर नहीं बैठा सकती।
वहीं लोकसभा उपुचनाव की बात करें तो दादरा और नगर हवेली में शिवसेना, हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट पर कांग्रेस और मध्य प्रदेश की खंडवा लोकसभा सीट पर बीजेपी को जीत मिली है। इन नतीजों से कई भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। पहला सवाल तो यह कि क्या मोदी मैजिक खत्म हो गया है? ऐसा इसलिए क्योंकि बंगाल में पीएम मोदी की ताबड़तोड़ रैलियों के बाद भी भाजपा ममता बनर्जी की टीएमसी को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब नहीं हुई। दूसरा यह कि उपचुनाव के नतीजों से भी लग रहा है कि अब मोदी के नाम पर वोट नहीं मिल रहे। यही वजह है कि विधानसभा और लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा की तुलना में ममता की टीएमसी और कांग्रेस बीस साबित हुई है।
मोदी मैजिक खत्म हुआ है या नहीं, अगले साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में स्पष्ट हो जाएगा। मगर इतना तो तय है कि जिन-जिन राज्यों में मजबूत नेतृत्व था, वहां संबंधित पार्टियों का बेहतर प्रदर्शन रहा है। चाहे असम हो या बंगाल या फिर मध्य प्रदेश। असम में हिमंत बिस्व सरमा के नेतृत्व में भाजपा को अच्छी जीत मिली है, वहीं मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह के चेहरे पर भरोसा जताकर जनता ने भाजपा को जिताया है। ठीक इसी तरह बंगाल और महाराष्ट्र की भी स्थिति है।
ममता की ‘माया’ के सामने भाजपा की न चली
बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने 30 अक्टूबर को हुए उपचुनावों में अपने प्रतिद्वंद्वियों को रिकॉर्ड अंतर से हराते हुए 4-0 से उनका सूपड़ा साफ कर दिया। भाजपा को बड़ा झटका लगा है क्योंकि उसके उम्मीदवारों की तीन निर्वाचन क्षेत्रों दिनहाटा, गोसाबा और खारडाह में जमानत जब्त हो गई। केवल शांतिपुर से भाजपा के उम्मीदवार की जमानत जब्त नहीं हुई। अब विधानसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या घटकर 77 से 75 हो गई है। इस साल अप्रैल-मई में राज्य में हुए चुनाव में भाजपा ने 77 सीट पर जीत हासिल की थी।
एमपी में मामा का मैजिक बरकरार
मध्य प्रदेश में मामा का जलवा अब भी बरकरार है, इसकी झलक उपचुनाव के नतीजों से दिख गई है। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा ने उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया। मध्य प्रदेश के खंडवा लोकसभा उपचुनाव और कांग्रेस के गढ़ जोबट (अजजा) और पृथ्वीपुर विधानसभा उपचुनावों में सत्तारूढ़ दल भारतीय  जनता पार्टी (भाजपा) ने शानदार विजय हासिल की, जबकि कांग्रेस को रैगांव (अजा) उपचुनाव में विजय से ही संतोष करना पड़ा। रैगांव में भी भाजपा जीतने में कामयाब रहती, मगर पार्टी में बगावत के सुर ने भाजपा को जीतने से रोक दिया। यह जीत इसलिए भी अहम है, क्योंकि उपचुनाव के दौरान शिवराज सिंह चौहान ही पार्टी के स्टार प्रचारक बने रहे।
हिमाचल में भाजपा को बड़ा झटका, जयराम ठाकुर रहे फेल
भारतीय जनता पार्टी को सबसे बड़ा झटका तो हिमाचल प्रदेश में लगा है। नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहटों के बीच हिमाचल प्रदेश में भाजपा चारों खाने चित हो गई है। भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका देते हुए विपक्षी दल कांग्रेस ने तीनों विधानसभा सीटों फतेहपुर, अर्की और जुबल-कोटखाई और मंडी लोकसभा सीट पर जीत हासिल कर ली। इस विधानसभा और लोकसभा उपचुनाव के नतीजों ने साफ बता दिया है कि हिमाचल के लोगों में जयराम ठाकुर के चेहरे पर अब भरोसा नहीं रहा। मंडी लोकसभा सीट से भाजपा के राम स्वरूप शर्मा ने 2019 लोकसभा चुनाव में 4,05,000 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। हिमाचल प्रदेश में करारी हार मिलने के बाद एक बार फिर से नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को बल मिला है। माना जा रहा है कि भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में किसी अन्य चेहरे के साथ जाना चाहेगी।
असम में हिमंत का जादू
असम के उपचुनाव में हिमंत बिस्वा सरमा की लीडरशिप का जादू देखने को मिला। असम के पांच विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनाव में सभी सीटों पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अगुवाई वाले गठबंधन ने जीत हासिल की। भाजपा तीन सीटों पर विजय रही तो दो विधानसभा सीटें उसकी सहयोगी यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) के खाते में गईं। उपचुनाव के नतीजों के बाद, 126 सदस्यीय असम विधानसभा में भाजपा विधायकों की संख्या बढ़कर 62 हो गई है जबकि यूपीपीएल के आठ विधायक हो गए हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन में दूसरे सहयोगी, असम गण परिषद के नौ विधायक हैं। उसने उपचुनाव में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था। विपक्षी खेमे में, कांग्रेस का संख्या बल 27 है, एआईयूडीएफ के 15, बीपीएफ के तीन और माकपा का एक विधायक है। एक निर्दलीय विधायक भी है।
महाराष्ट्र में भी MVA मजबूत
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे का चेहरा अब भी मजबूत है और इसकी बानगी उपचुनाव के नतीजों में दिख गई। महा विकास अघाड़ी में शामिल कांग्रेस ने उपचुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त दी है। महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले की देगलूर (सुरक्षित) सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार जितेश रावसाहेब अंतापुरकर की जीत के साथ ही पार्टी का इस सीट पर कब्जा बरकरार रहा। जितेश के पिता तथा इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार रावसाहेब अंतापुकर के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव कराए गए थे।
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