अगर अमर सिंह जीवित होते और स्वस्थ होते तो 2022 के चुनाव में भाजपा के रणनीतिकारों में से एक होते

सपा में एक समय सत्ता के केन्द्र बने रहे
अमर सिंह का बचपन गरीबी में बीता, पिता कोलकाता में नौकरी करते थे, उन्होंने वहीं रहकर पढ़ाई लिखाई की
वे राजनेता से भी बड़े लाइजनर के रूप में मशहूर थे
सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव, औद्यौगिक घरानों और फिल्म उद्योग में उनके कई घनिष्ठ मित्र थे और वे कई के संरक्षक भी थे
अनिल शर्मा़+संजय श्रीवास्तव़+डा0 राकेश द्विवेदी
दिल्ली। सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे अमर सिंह एक राजनेता के साथ-साथ एक बड़े लाइजनर के रूप में विख्यात थे। औद्यौगिक घरानों और फिल्म उद्योग में उनके कई मित्र तो थे ही, वे कई के संरक्षक भी थे। अमर सिंह एक समय समाजवादी पार्टी में सत्ता के केन्द्र भी रहे। इधर उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुसांगिक संगठन सेवा भारती को अपने जिले आजमगढ़ में तरवा की जमीन और मकान जो करीब 12 करोड़ की संपत्ति है, उसे बीती 22 फरवरी को दान दे दी है। इधर उनकी निकटता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और संघ के अखिल भारतीय अधिकारियों से भी बढ़ी थी। यदि उनका स्वास्थ्य ठीक रहता और वे जीवित रहते तो अमर सिंह आगामी उप्र के 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के रणनीतिकारों की टीम में होते।
मालूम हो कि अमर सिंह का जन्म 27 जनवरी 1956 को आजमगढ़ के तरवा में हुआ था। वे गरीबी में पले बढ़े। उनके पिता कोलकाता में नौकरी करते थे। अमर सिंह का बचपन कोलकाता में बीता। उन्होंने कोलकाता के सेंट एक्सजेवियर कालेज, विश्विद्यालय में पढ़ाई पूरी की। इस दौरान उन्होंने कोलकाता में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी सरकार की कार्यषैली को देखा। उससे प्रभावित हुए और सीपीएम की युवा शाखा में कार्य भी करने लगे। यहां उन्होंने यह जाना कि जीवन में राजनैतिक पावर से सारी चीजें पाई जा सकती हैं।
उनकी पत्नी का नाम पंकजा कुमारी सिंह है और उनके दो बेटियां हैं। समाजवादी चिंतक एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कमाण्डर अर्जुन सिंह भदौरिया की बेटी कोलकाता में रहतीं हैं। कमाण्डर अर्जुन सिंह भदौरिया उनसे मिलने अकसर आते थे और बाद में वहीं रहने लगे। इस दौरान पहले राष्ट्रीय लोकदल के नेता के रूप में और बाद में समाजवादी पार्टी के संस्थापक के रूप में मुलायम सिंह यादव अकसर अर्जुन सिंह भदौरिया से मिलने कोलकाता जाते थे।
यह जानकारी होने पर अमर सिंह मुलायम सिंह और कमाण्डर अर्जुन सिंह भदौरिया से मिलने के लिए उनकी बेटी के घर के बाहर घण्टों बैठे रहा करते थे। यहीं से अमर सिंह की जानपहचान मुुलायम सिंह यादव और अर्जुन सिंह भदौरिया से हुई। एकबार कोलकाता से विमान में लखनऊ आते समय उनकी सीट मुलायम सिंह यादव के बगल में पड़ गई। इस यात्रा के दौरान मुलायम सिंह यादव से हुई उनकी लंबी बातचीत के बाद वे मुलायम सिंह यादव के बहुत करीब आ गए। यही करीबी लगातार बढ़ती रही। मुलायम सिंह यादव ने उन्हें समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय बनाया। वे 1996 में सपा के राज्यसभा सदस्य बने। फिर 2002 में, तथा 2008 में राज्यसभा सांसद बने। 2005 में जब मुलायम सिंह यादव ने उप्र विकास परिषद का गठन किया तो उसका चेयरमेन अमर सिंह को बनाया। उस समय वे इतने ताकतवर हो गए थे कि वे एक प्रकार से समानान्तर सरकार चला रहे थे। समाजवादी पार्टी में वे अकेले ऐसे नेता थे कि गैर यादव होने के बावजूद भी वे पार्टी मे मुलायम सिंह यादव के बाद दूसरे स्थान पर गिने जाते थे। अमर सिंह ने राजनैतिक संबंधों का लाभ उठाकर सहाराश्री सुब्रत राय और अनिल अंबानी सहित कई औद्यौगिक घरानों से घरेलू संबंध बना लिए थे।
उन्होंने अपनी पूंजी औद्यौगिक घरानों में लगाई और देखते देखते वे अरबपति हो गए। एक समय ऐसा आया जब बिगबी के नाम से मषहूर फिल्मों में सदी के नायक अमिताभ बच्चन की कंपनी एबीसीएल घाटे में डूब गई। अमिताभ बच्चन कर्ज में डूब गए थे और दीवालिया होने की कगार पर थे। तब अमर सिंह ने दोस्ती का हाथ बढ़ाकर उन्हें कर्ज से उबारने में सहायता की। बाद में जया बच्चन की नाराजगी के चलते उनके और अमिताभ के बीच में दूरियां बढ़ीं। फिल्म उद्योग की चकाचैंध से वे नहीं प्रभावित हुए बल्कि अमर सिंह के प्रभाव और धन कारण फिल्म के अभिनेता और अभिनेत्रियां उनसे नजदीकियां बढ़ाने लगे।
उन्होंने अपनी मित्र और प्रसिद्ध अभिनेत्री जयाप्रदा को सपा के बड़े मुस्लिम नेता व मंत्री आजम खां के विरोध के बावजूद रामपुर से लोकसभा सीट का टिकिट दिलवाया। जयाप्रदा को चुनाव जिताकर सांसद बनवाकर अपनी रणनीति का लोहा मनवाया। लेकिन जब अखिलेष यादव मुख्यमंत्री बने और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो उनके और अमर सिंह के बीच छत्तीस का आंकड़ा हो गया। अमर सिंह को 2010 में पार्टी से निकाला गया। 2011 में उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। उन्होंने स्वयं को समाजवादी की जगह मुलायमवादी कहना शुरू कर दिया। उन्होंने मुलायम सिंह से अपनी नजदीकियां बनाए रखीं। जिसका परिणाम यह हुआ कि 2016 में अमर सिंह की फिर सपा में वापिसी हुई। वे फिर राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए। राजनीति के चतुर खिलाड़ी अमर सिंह को 2016 में एक बार फिर सपा ने राज्यसभा सांसद बनाया। लेकिन अखिलेष यादव से उनकी दूरी बढ़ती गई। अमर सिंह एक बार फिर बीमार पड़े और सिंगापुर में उन्होंने अपनी किडनी का ट्रांसप्लाण्ट कराया।
इस बीच उन्होंने अपनी नजदीकियां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और संघ के शीर्ष अधिकारियों से बढ़ानी शुरू कर दीं। 22 फरवरी 2019 को आजमगढ़ के तरवा की अपनी जमीन व मकान जिसकी कीमत लगभग 12 करोड़ थी, को संघ के अनुसांगिक संगठन सेवा भारती को दान कर दी। इसलिए भाजपा के राजनैतिक गलियारों में यदि अमर सिंह जीवित रहते और स्वस्थ रहते तो 2022 के उप्र के चुनाव में वे भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों की टीम में से एक गिने जाते।
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