कार्यकमों की सार्थकता पर खुद जिम्मेदार अधिकारी निराश

जानकारी देते वनाधिकारी अंकेश श्रीवास्तव
पौधा रौपड के लक्ष्य तो किये पूरें पर नही बचा पाते पौधे
डीएफओ ने रोया दुखड़ा, बोले अनुकूल नही बीहड की भूमि
उरई(जालौन)। वर्षो से जनपद में चलाये जा रहे पौधारोपण के कार्यकमों की वास्तविकता क्या है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तमाम प्रयासों के बाद लक्ष्य तो पूरे कर दिये जाते है पर कार्यकमों की सार्थकता की बात करें तो स्वयं आलाधिकारी भी संतुष्ट नजर नही आते। फिलहाल जिस मंशा से लाखो करोड़ो रूपये खर्च कर विभाग अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री कर लेता है। उसके सापेक्ष नतीजें ढ़ांक के तीन पात ही नजर आते है। आलाधिकारियों की माने तो भौगोलिक रूप से प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते उन्हें अपेक्षित कामयाबी हासिल नही हो पा रही है।
उल्लेखनीय है कि विगत दो दशक से जनपद में शासन के आदेशानुसार वृहद वृक्षारोपण के कार्यक्रम चलाये गये। जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका वन विभाग की सुनिश्चित की गयी। देखा जाये तो पिछले अधिकांश कार्यक्रमों में वन विभाग ने मिले हुये लक्ष्यों को तो पूरा किया और बड़ी संख्या में पौधे रोपित भी कराये। पर लगाये गये पोधों की सार्थकता की बात करें तो नतीजे बेहद ही निराशा जनक रहें। अब इसे क्या कहेगे कि जिम्मेदार अमले ने पौधे तो रोपित कराये पर उनमें से अधिकांश अपना अस्तित्व न बचा सके और समय से पूर्व ही वह नेश नाबूद हो गये। इस संबंध में जब वन विभाग के मुखिया वनाधिकारी अंकेश श्रीवास्तव से इस बाबत जानकारी ली तो उनकी पीड़ा साफ नजर आयी। उनका कहना रहा कि जिलें में उनका अधिकांश वन क्षेत्र बीहड़ की ककरीली और बंजर अनुपजाउ जमीन का पड़ता है। जहां पौधे अपना अस्तित्व नही बचा पाते यही नही वह वन क्षेत्रों में पानी के संकट को भी इसके लिये जिम्मेदार मानते है बहरहाल जो भी हो लेकिन बात यह समझ में नही आती कि जब वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाया जाता है तो विभागीय तौर पर इन बातों पर गौर क्यों नही किया जाता कि उन्हें किस जगह और किस तादात में अथवा किस किस्म के पौधे रोपित कराने है। ताकि लगाये गये पोधें आसानी से संबधित परिस्थतियों में विकसित हो सके और उनकी सार्थकता मिल सके।