“घोड़े” अब घास नहीं सोना खाने लगें

सोने की कीमतें 55 हजार रुपए प्रति दस गाम से ऊपर पहुंचीं
देश में सोने का आयात बढ़ा
अनिल शर्मा़+संजय श्रीवास्तव़+डा0 राकेश द्विवेदी
जयपुर। “घोड़ों’ ने अब घास खाना छोड़ दिया है क्यों कि आए दिन किसी न किसी राज्य में सरकारें गिराने और बनाने का सिलसिला चलता रहता है। जिससे “घोड़ों’ की कीमतें लगातार बढ़ती जा रहीं हैं। लेकिन दूसरी तरफ लोकतंत्र की श्रेष्ठ परंपरा का क्षरण होता चला जा रहा है। लोकतांत्रिक परंपराओं में भरोसेमंदी कम होती चली जा रही है। अब कितनी भी बहुमत वाली सरकार को तोड़ना मात्र तिकड़मबाजी का हुनर रह गया है। पहले किसी दल के विधायक को तोड़ने के लिए मंत्री पद का लालच दिया जाता था। फिर पद के साथ करोड़ों रुपए देने की परंपरा शुरू हो गई। अब वह भी पुरानी पड़ गई है। अब “घोड़ों’ को रुपयों पर यकीन नहीं है। वे पद की मांग तो करते ही हैं, इसके साथ अब सोने की भी मांग करते बताए जा रहे हैं। जिसका परिणाम है कि सोने का भाव तेजी से बढ़ता जा रहा है। आज सोने का भाव 55 हजार रुपए प्रति दस ग्राम से भी ज्यादा हो गया है।
देश में चाहे जैसी मंदी आ जाए, पुराने नोट का चलन अचानक बन्द हो जाए, लेकिन सोने का मार्केट दौड़ से कभी खत्म होने वाला नहीं है। इसलिए हार्स ट्रेडिंग में घोड़ों को अब घास नहीं, रुपया नहीं, सोना पसंद आ रहा है। हालत यह है कि चाहे इस दल की सरकार हो या उस दल की, कोई न कोई तरीका अपनाकर बहुमत वाली सरकार को गिराने या अल्पमत वाली पार्टी को सत्ता में बैठाने के लिए कलारास बिकाऊ “घोड़े” अब हर प्रदेश में तैयार खड़े मिल जाते हैं। सरकार गिराने के और नई सरकार बनाने के लिए नेताओं के पास अपने अपने तर्क हैं। लेकिन हकीकत यह है कि जिनके पास घोड़ों को देने के लिए सोना है वे किसी भी दल की सरकार बना या गिरवा सकते हैं।
इस सन्दर्भ में एक 87 वर्षीय बुजुर्ग ने अपने राजनीतिक समय को याद करते हुए बताया कि केशव देव मालवीय प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमण्डल में पेट्रोलियम मंत्री थे। उन पर संसद में विरोधी दल के एक सांसद ने यह आरोप लगाया कि मालवीयजी के कहने पर किसी व्यापारी ने किसी व्यक्ति की पांच सौ रुपए की मदद की है। यह आरोप सुनने के बाद मंत्री केशव देव मालवीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कक्ष में गए और उन्हें एक लिफाफा दिया। पण्डित नेहरू ने जब लिफाफा खोलकर देखा तो उसमें मालवीयजी ने अपना पेट्रोलियम मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इस पर जब नेहरूजी ने जानना चाहा कि यह क्या है तो मालवीयजी ने कहा कि मुझे याद नहीं है लेकिन विरोधी दल के एक सदस्य ने जब मुझ पर यह आरोप लगाया तो हो सकता है कि जरूरतमंद की मदद के लिए मैंने किसी व्यापारी से कह दिया हो। नेहरूजी ने मालवीयजी के कहने पर उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया।
अगले चुनाव में केशव देव मालवीय फूलपुर (इलाहाबाद) से फिर लोकसभा का चुनाव लड़े और जीते और फिर पण्डित नेहरू की केबिनेट में पेट्रोलियम मंत्री बने। बुजुर्ग व्यक्ति के चेहरे पर गर्व दिखाई देने लगा और वे बोले कि तब जनप्रतिनिधि लोकतंत्र में लोकलाज की सबसे ज्यादा फिक्र करते थे। अब उसकी जगह मुझे कैसे पद मिल जाय, कैसे भी संपत्ति मिल जाय राजनीति में यह नहीं रवायत शुरू हो गई है। अब किसी भी राज्य की कोई भी कितनी भी बहुमत वाली सरकारी क्यों न हो, वह सुरक्षित नहीं रह गई है। क्योंकि कलारास घोड़े ‘‘सोने’’ को देखकर मुस्करा रहे हैं।