पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व के कई पहलू हैं। पूर्वी पाकिस्तान पर जीत हासिल करने यानी बांग्लादेश के गठन में बड़ी भूमिका अदा करने के लिए उन्हें दुर्गा और आयरन लेडी तक कहा गया। लेकिन एक फैसले की वजह से उन्हें न केवल आलोचना का सामना करना पड़ा बल्कि वह 1977 का लोकसभा चुनाव भी हार बैठीं।
आज जब 19 नवंबर को पूरा देश इंदिरा गांधी की जयंती मना रहा है तो आइए जानें उनके उन दो फैसलों के बारे में जिनमें से एक पर उनकी खूब तारीफ हुई तो दूसरे निर्णय को भारतीय इतिहास में तानाशाही फैसले के तौर पर याद किया जाता है।
आखिर क्या वजह रही जिसके चलते उन्हें इमर्जेंसी लागू करनी पड़ी, आपातकाल पर उन्होंने कई मर्तबा इसका जिक्र किया कि उन्हें यह फैसला क्यों लेना पड़ा।
नींद में पहुंचे थे मंत्री, इंदिरा ने सुनाया था फैसला
असल में, 26 जून 1975 को सुबह 6 बजे कैबिनेट की एक बैठक बुलाई गई। मंत्रियों को बता दिया गया कि आधी रात के बाद से देश में आपातकाल लगा दिया गया है। मंत्रियों की पलकें नींद से मुंदी जा रही थीं और उन्हें इस ऐलान की उम्मीद नहीं थी। देश को यह सूचना देने से पहले कैबिनेट की महज औपचारिक सहमति बस ली भर गई। इसके बाद इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो से इसकी घोषणा की जिसकी आम अवाम को भी कतई उम्मीद नहीं थी।
किसी के गले नहीं उतरे आपातकाल के तर्क
इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया ऑफ्टर नेहरू’ में लिखते हैं, इंदिरा गांधी ने बताया कि राष्ट्रपति ने देश में आपातकाल की घोषणा की है, और इसमें घबराने की कोई बात नहीं है। इंदिरा गांधी ने कहा कि यह एक जरूरी कदम था, क्योंकि जब उन्होंने देश की आम जनता के हित में कुछ प्रगतिशील कार्यक्रमों की शुरुआत थी, तब से इसके खिलाफ गहरी साजिश की जा रही थी। उन्होंने दावा किया कि विखंडनकारी ताकतें, साम्प्रदाायिक शक्तियां देश की एकता को तोड़ने का प्रयास कर रही थीं। उनके मुताबिक उनका सत्ता में रहना या न रहना ज्यादा अहम नहीं है। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि हालात बहुत जल्द सामान्य हो जाएंगे और आपातकाल हटा लिया जाएगा।
अदालती फैसले के बाद उठाया था ये कदम रामचंद्र गुहा का कहना है, आपातकाल के पक्ष में दिया गया यह तर्क काफी रक्षात्मक किस्म का था। हकीकत यह थी कि आपातकाल लगाया ही इसलिए गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी को संसदीय मतदान में हिस्सा लेने से मना कर दिया था। जब आपातकाल की घोषणा की गई, उस समय प्रधानमंत्री की सबसे करीबी मित्र और कलाविद् पुपुल जयकर अमेरिका में थीं। 27 मई को इंदिरा गांधी ने पुपुल जयकर को सूचना दी कि बढ़ती हुई हिस्सा, नफरत और गलत बातों का प्रचार को रोकने के लिए आपातकाल लगाना पड़ा। उन्होंने दावा किया कि महज नौ सौ लोगों को गिरफ्तार किया गया, और ज्यादातर अरेस्ट किए गए लोगों को जेलों में नहीं बल्कि आरामदायक मकानों में रखा गया था।
इंदिरा इंदिरा गांधी ने कहा कि आपातकाल के बारे में देश के आम लोगों की सामान्य राय अच्छी है, और देश में अमन-चैन का माहौल है। उनकी राय में आपातकाल इसलिए लगाया गया ताकि मुल्क सामान्य लोकतांत्रिक गतिविधियों की तरफ फिर से लौट आए।
जेलों में नहीं बची थी लोगों को रखने की जगह
देशभर में पुलिस लोगों को गिरफ्तार कर रही थी। गिरफ्तार किए जाने वाले लोगों में से कांग्रेस को छोड़कर दूसरे अन्य दलों के नेता शामिल थे। छात्र कार्यकर्ता, मजदूर नेता, और जिन लोगों का थोड़ा सा भी संबंध जनसंघ, कांग्रेस (ओ), समाजवादी और अन्य किसी भी दूसरे कांग्रेस विरोधी समूह थे, पुलिस उन्हें उठा रही थी। जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई जैसे लोगों को दिल्ली के पास हरियाणा के किसी गेस्टहाउस में रखा गया था, जबकि ज्यादातर लोगों को पहले से ही कैदियों से खचाखच भरी जेलों में बंद कर दिया गया।
यह तादाद इंदिरा गांधी के दावे से बहुत ज्यादा थी। हजार लोगों को आतंरिक सुरक्षा कानून में बंद कर दिया गया। इस कानून को लोगों ने इंदिरा-संजय सुरक्षा कानून कहना शुरू कर दिया। लोगों को दबाने के लिए दूसरे कानूनी हथियारों का सहारा लिया गया। ग्वालियर और जयपुर की राजमाताओं को जेल में बंद कर दिया गया। उन पर ऐसी कानूनी धाराएं लगाई गईं जो अमूमन काला बाजारियों और तस्करों पर लगाई जाती हैं।
इंदिरा देती रहीं सफाई, लोकतंत्र बचाने की दुहाई आपातकाल के शुरुआती महीने में इंदिरा गांधी ने कई इंटरव्यूज दिए। इनमें भी वो काफी रक्षात्मक नजर आईं। लंदन से छपने वाले ‘लंदन टाइम्स’ को दिए गए एक इंटरव्यू में इंदिरा गांधी ने कहा कि ये पूरी तरह गलत है कि उन्होंने खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए आपातकाल लगाया है। उन्होंने कहा कि जेपी की तरफ से पेश की गई असंवैधानिक चुनौती से संविधान के नियमों के हिसाब से निपटने की कोशिश की गई है।
इंदिरा गांधी की राय में देश को अव्यवस्था और विखंडन से बचाने के लिए आपातकाल लागू किया गया। उन्होंने कहा कि नए आर्थिक कार्यक्रमों को लागू करने और देश में आत्मविश्वास की भावना भरने के लिए आपातकाल जरूरी था। न्यूयॉर्क से छपने वाले ‘सैटरेडे रिव्यू’ को दिए इंटरव्यू में इंदिरा गांधी ने कहा कि आपातकाल लोकतंत्र के खात्मे के लिए नहीं बल्कि इसकी हिफाजत के लिए लागू किया गया है। अपने इंटरव्यू में उन्होंने पाकिस्तान और चीन जैसे देशों से ज्यादा अधिकायकवादी शासन की तुलना में भारत की आलोचना करने के लिए पश्चिम प्रेस की आलोचना की थी।
दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश की लकीर उकेरी
इंदिरा गांधी की कूटनीतिक चाल की वजह से 1971 में बांग्लादेश दुनिया के नक्शे पर उभरकर सामने आया। 1971 का युद्ध भारत के लिए सिर्फ सैन्य जीत नहीं थी, बल्कि ये राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से बहुत बड़ी कामयाबी थी। भारत ने अपनी चाल से पाकिस्तान के पावरफुल दोस्त अमेरिका और चीन को हैरान कर दिया था। 1971 का युद्ध शुरू होने से पहले तक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कई पहलुओं पर रणनीति बना चुकी थीं। उन्होंने अपने सैन्य जनरलों को पूरी छूट दी कि वे मुक्ति वाहिनी को कायदे से तैयार करें। वह आने वाले कूटनीतिक संकट के लिए खुद भी तैयार थीं।
कूटनीति से पाकिस्तान को दी थी मात इंदिरा गांधी का 1971 युद्ध के लिए नजरिया एकदम साफ था कि यह छोटा और निर्याणक हो। युद्ध लंबा चलने पर अमेरिका और चीन जैसे देश की दखलंदाजी का डर था। इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान का संकट शुरू होने से लेकर युद्ध तक अपना पेशेंस बनाए रखा। रिफ्यूजी की संख्या बढ़ रही थी, कलकत्ता से पूर्वी पाकिस्तान की निर्वासित सरकार चल रही थी। भारत में इस सरकार को आधिकारिक पहचान देने की मांग चल रही थी। मगर इंदिरा गांधी ने पेशेंस नहीं खोया। वह नहीं चाहती थीं कि किसी भी हालत में भारत जंग शुरू करे। पाकिस्तान के एयरफोर्स के हमले ने इस बात को सुनिश्चित कर दिया था। हमले के दौरान इंदिरा कलकत्ता में थीं। वह जल्द दिल्ली पहुंचीं और देश को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम पर एक युद्ध थोपा गया है।’ इस वाक्य से उन्होंने अपना पक्ष मजबूत कर लिया। इंदिरा गांधी की इस रणनीति में उनकी कूटनीति की एक झलक दिखी। शायद यही वजह रही जिस पर अटल बिहारी बाजपेयी ने उन्हें दुर्गा कहा था।
संजय श्रीवास्तव-प्रधानसम्पादक एवम स्वत्वाधिकारी, अनिल शर्मा- निदेशक, शिवम श्रीवास्तव- जी.एम.