डिम्पल की मूँछों के सहारे नेताओं के बीच मूँछे ऊंची करने का संघर्ष

अर्जुन पुत्र अभिमन्यु उर्फ डिम्पल को गांव की पार्टीबंदी ने दे दी क्रिमिनल की छवि।

शान की इस लड़ाई में कहीं भाजपा की ही मूँछ नीची न हो जाये

रौब और खौफ की बदौलत हर पार्टी की जरूरत बन चुके जिला बदर अभिमन्यु

अभी भी विरोधियों से बड़ी हैं डिम्पल की मूंछें

अनिल शर्मा+ संजय श्रीवास्तव + डॉ. राकेश द्विवेदी

भाजपा के भीतर काफी समय से नए किस्म का संघर्ष छिड़ा हुआ है। जो लड़ाई हो रही है वह चेहरे की मूँछों की नहीं बल्कि शान ऊँची करने वाली मूँछों की है। अब तो ताल ठुक गई है। नदीगांव के माफिया के रुप में चर्चित अभिमन्यु सिंह परिहार उर्फ डिम्पल का जिला बदर होना सांसद गुट की असफलता मानी जा रही है। डिम्पल तो मात्र मोहरा रहे , असली लड़ाई का कारण इन नेताओं का कुछ और ही है। इसका ज्वलंत रुप सहकारिता चुनाव में दिखाई दिया था।

वैसे अब मूँछ की कोई पूछ नहीं पर इस वक्त भाजपा के भीतर इसकी अहमियत बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। जिन लोगों के बीच शान रूपी मूँछों पर मोर्चेबंदी हो रही है दरअसल उनमें से कोई अपने चेहरे पर ऐसी मूँछें नहीं रखता जो ऐंठी जा सकें या ऊपर- नीची की जा सकें। फिर भी उधार की मूँछों के सहारे राजनीति को घुमाया जा रहा है।
डिम्पल को पुलिस ने अपराधी घोषित कर 6 महीने के लिए जिला बदर घोषित किया है। एसपी ने कहा है कि डिम्पल पर 68 मुकदमे हैं और उसका नदीगांव क्षेत्र में खौफ है। खौफ के बल पर दूसरों की जमीनों पर कब्जा किया जाता है। डिम्पल पर जिला बदर की कार्रवाई दूसरी बार हुई है। इसके पहले 2017 में जिलाधिकारी द्वारा यह कदम उठाया गया था। गत लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद डिम्पल पर यह कार्रवाई अमल में जिलाधिकारी लाना भी चाहते थे पर चुनावी जीत का मजा कहीं किरकिरा न हो जाये, इसलिए सांसद और पूर्व जिलाध्यक्ष इसे टलवाने में सफल हो गए।
बिकरु घटना के बाद जब सरकार सख्त हुई तो तमाम लोगों की नजरें डिम्पल की स्वाभाविक छवि पर गई। कानाफूसी पार्टी के भीतर और बाहर तक होने लगी कि डिम्पल पर तो इतने गंभीर मुकदमे हैं, फिर सांसद, जिलाध्यक्ष और जेडीसी बैंक अध्यक्ष उन्हें अपने साथ इतनी प्रमुखता से क्यों रखते हैं ? कई अवसरों पर डिम्पल को सांसद और भाजपा जिलाध्यक्ष के साथ देखा भी गया। डिम्पल विधायकों की नजर में तब और खटके जब राममंदिर के शिलान्यास के अवसर पर शहर में उनके नाम के फोटो सहित होर्डिंग्स लग गए।
राजनीति में मोहरे बदलते रहते हैं। गौरीशंकर वर्मा जब कोंच से अपना आखिरी चुनाव लड़े थे, तब यही डिम्पल उनके लिए वोट माँग रहे थे। जबकि अपनी ताकत का अहसास कराने को सांसद के बेटे मनोज भान वर्मा को ब्लॉक प्रमुख चुनाव में हरवाकर गुलाब जाटव की मां को विजयश्री दिलवा दी थी। तब सांसद को अभिमन्यु फूटी आँख नहीं सुहाते थे। अब यह स्थिति है कि सांसद का मोबाइल अभिमन्यु का बेटा ही हमेशा रिसीव करता पाया जाता है। ऐसी स्थिति बनवाने में उदय पिंडारी की भूमिका महत्वपूर्ण मानी गई। पिंडारी को जेडीसी बैंक के अध्यक्ष का चुनाव लड़ना था इसलिए वह अपने गणित के अनुसार संचालकों को चुनाव लड़वाना चाहते थे। चूंकि सांसद के लड़के को भी चुनाव लड़ना था जो बिना डिम्पल की मदद के जीतना असंभव था। दोस्ती का हाथ बढ़ा तो पिंडारी भी जीते और मनोजभान भी। जबकि तीनों विधायक यह नहीं चाहते थे कि पिंडारी अध्यक्ष का चुनाव लड़ें। इसीलिए उनकी बोर्ड चुनाव में ही घेरेबंदी की गई पर डिम्पल के कारण सफलता नहीं मिली। खुद डिम्पल का कहना है कि दो विधायकों ने मुझे फोन कर कई बार दबाव बनाया था कि पिंडारी और मनोज चुनाव न जीतने पाएं। दरअसल विधायकगण पिंडारी के खिलाफ युवराज सिंह को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़वाना चाहते थे। युवराज को ब्रजभूषण मुन्नू सपा नेता शत्रुघ्न सिंह के सहारे मात दे पाए। वैसे मुन्नू को हराने को पूरी कोशिश हो चुकी थी। यदि युवराज सिंह जीतते तो पिंडारी का अध्यक्ष बन पाना लगभग असंभव था। क्योंकि 13 में से 7 वोट जुटाना विधायकों के लिए कठिन नहीं होता। फिर अतीत की बातों को याद कर स्वतंत्रदेव सिंह का भी सहयोग संभव था।
पिंडारी के अध्यक्ष बनने पर विधायक गुट कराह उठा था। इस हार का असली दोषी तब डिम्पल को ही माना गया।
जिलाबदर की कार्रवाई के बाद डिंपल सिंह ने दो विधायकों सहित एक पूर्व मंत्री पर हमला बोला है। कहा कि मेरे जिला निष्कासन में जिले के कुछ राजनीतिक माफिया प्रवृत्ति के जनप्रतिनिधियों व उनके सहयोगियों का हाथ है ताकि इसका लाभ अपने सहयोगियों को चुनाव में कराया जा सके। उन पर अन्य पार्टियों से जुड़ाव के आरोप लगाए जाते हैं। यह आरोप वही लगाते हैं जो ख़ुद समय देखकर मलाई खाने पार्टी में आ गए। कई नेता तो महत्वपूर्ण पदों पर रहकर पार्टी को दीमक की तरह चाट कर खाए जा रहे हैं। डिम्पल ने खुद को बाल स्वयंसेवक बताकर ओटीसी तक करने की बात कही। बताया कि 1998 के चुनाव में डॉ गोविंद सिंह के खिलाफ चुनाव प्रचार करने को वह भी बाबूराम एमकॉम के साथ लहार गए थे। गृह मंत्री बनने के बाद गोविंद सिंह ने कई फर्जी मुकदमे इसी खुन्नस में लिखवाए थे। हाल ही में एससी/एसटी एक्ट का भी मुकदमा विधायक के इशारे पर लिखवाया गया जो झूठा है। सांसद और मेरे कोरोना पॉजिटिव होने पर उक्त लोगों को षड्यंत्र करने का अवसर मिल गया और यह कार्रवाई करवा दी गई।
उधर उरई विधायक गौरीशंकर वर्मा का कहना है कि इस कार्रवाई में उनकी कोई भूमिका नहीं है। जो जैसा करता है उसे उसका परिणाम भोगना पड़ता है। उन्होंने कहा कि कानून अपना काम कर रहा है।
आरोप – प्रत्यारोप कुछ भी हो पर डिम्पल को पुलिस प्रशासन भी दोषी मानता है। उनके विरुद्ध कई संगीन आरोप हैं। आपराधिक छवि से बाहर निकलकर वह खुद को राबिनहुड की भूमिका में भले उतारना चाहते हों पर क्षेत्र में अभी भी उनकी खौफ पैदा करने वाली छवि मानी जाती है। धन और खौफ के बल पर वह इतने ताकतवर जरूर हो चुके हैं कि सभी पार्टियां किसी भी चुनाव में उनकी मदद पाने को प्रयासरत हो जाती हैं। सत्ता पक्ष का इस्तेमाल अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाना है , यह हुनर उनमें बखूबी आ चुका है ? इन दिनों तो वह सांसद और जिलाध्यक्ष के खास लोगों में शुमार होने से और ज्यादा ताकतवर हो चुके थे। पार्टी की ओर से यह भूल जरूर होती रही कि जब डिम्पल पर इतने मुकदमे हैं और अभी सभी में दोषमुक्त नहीं हुए हैं तो फिर उनको इतना लाइम लाइट में रखने का प्रयास क्यों हुआ ? जेडीसी बैंक के शपथ ग्रहण समारोह के तो वह संयोजक थे और रामेंद्र बनाजी के स्वागत समारोह में डिम्पल को मंच तक पर बैठने का मौका मिला था, जबकि किसी भी महिला पदाधिकारी को मंच पर जगह नही मिल पाई थी। पार्टी के भीतर मची यह रार आगामी चुनावों में और ज्यादा देखने को मिलेगी , इतना तो अब तय है। सभी देख रहे हैं कि डिम्पल अपने विरुद्ध की जाने वालीं सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधियों एवम नेताओं द्वारा की जाने वाली साजिशों का पूरी निडरता और साहस के साथ न सिर्फ जवाब दे रहे हैं। बल्कि अपने विरुद्ध साजिश करने वाले नेताओं के विरुद्ध खुला हमला करके अपनी दबंगी का विपरीत होती परिस्थितियों में भी सबको एहसास करा दिया है।

संजय श्रीवास्तव-प्रधानसम्पादक एवम स्वत्वाधिकारी, अनिल शर्मा- निदेशक, डॉ. राकेश द्विवेदी- सम्पादक, शिवम श्रीवास्तव- जी.एम.

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