प्रवासी श्रमिकों के पसीने से फूट पड़ी घरार नदी की जलधारा

सैकड़ों वर्ष पुरानी बुंदेली परंपरा लौटी
गांव वालों ने प्रवासी श्रमिकों को एक-एक बीघा जमीन एक वर्ष के लिए फ्री दी तथा एक-एक बीघा जमीन बटाई पे दी
श्रमिक महिलाएं बोली बकरी पालन और अन्न बैंक के माध्यम से अब गांव में ही आर्थिक रूप से मजबूत बनेंगे
अनिल शर्मा+संजय श्रीवास्तव+डॉ. राकेश द्विवेदी
भावंरपुर(बाँदा): दूसरे और तीसरे लॉकडाउन के बाद पंजाब, दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र से बदहाल हालत में अपने गांव भावंरपुर लौटे 53 पुरुष और महिला श्रमिकों ने हौसला नहीं छोड़ा। बल्कि गांव में ही कुछ ऐसा करने का सोचा जिससे रोजी रोटी के लिए पलायन कर परदेश न जाना पड़े। करीब 25 दिनों तक अपने घरों मे सोचने विचारने के बाद जब एक दिन गांव में आकर सामाजिक कार्यकर्ता राजा भैया ने उन्हें समझाया तथा जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. संजय सिंह से बात करवाई। और ये तय हुआ कि पिछले एक दशक से गांव की सूखी पड़ी घरार नदी पर यदि श्रम दान किया जाए तो किस्मत बदल सकती है। इसके बाद बीती 07 जून को प्रवासी श्रमिकों की एक बैठक घरार नदी के किनारे पेड़ों के नीचे हुई। इसमे महिला मजदूर श्रीमती बबिता उनके पति महेश, रानी पत्नी राम सजीवन, चंदा पत्नी रति राम, ललिता पत्नी नत्थू प्रसाद, बृजरानी पत्नी नन्हू, सियाप्यारी पत्नी महेशुरा, शांति पत्नी कैथी, आशा पत्नी श्री विशाल, रंची पत्नी रामकृपाल, चंपा पत्नी छुट्टो, पुनीता पत्नी राजकुमार, रूकिया पत्नी गोपी, राजाबाई पत्नी रामलाल, समाजसेवी राजा भैया उनकी टीम की मीरा राजपूत, सुरेश, शिवकुमार सहित ग्रामीण भी मौजूद थे। इस बैठक में महिला श्रमिकों ने सबसे पहले कहा कि हमे रोजी रोटी के लिए पलायन करके परदेश नहीं जाना है। यहीं अपनी किस्मत बनानी है। इसके बाद सर्वसम्मति से लोगों ने घरार नदी में 08 जून से श्रम दान करने का निर्णय लिया। सभी प्रवासी मजदूर अपने फावड़े, कुदालें, तसले, डलिया लेकर श्रम दान करने पहुंच गए। घरार नदी मे वर्षों से बेशरम, कटीली झाड़ियां, खर पकवार उगी हुई थी। मजदूरों ने सबसे पहले बेशरम, कटीली झाड़ियां, खर पकवार को जड़ से उखाड़ना शुरू किया। कई ट्रक बेशरम, कटीली झाड़ियां और खर पकवार चार दिनों तक निकाली गई। इसके बाद सभी मजदूरों ने दस मीटर चौड़ी तथा एक किलोमीटर लंबी नदी से पूरा झाड़- झंखाड़ निकाल दिया। इसके बाद उन्होंने नदी का मलवा निकालना शुरू किया। तीन दिन नहीं बीते कि मजदूरों के पसीने से मलवा हटते ही नदी के जल स्रोत टूट और देखते ही देखते नदी में चौबीस घंटे के भीतर तीन-चार फुट पानी भर गया। ये देखते ही प्रवासी मजदूरों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वे नाचने गाने लगे और ईश्वर के जय घोष जोर-जोर से लगाने लगे। ये खबर फैलते ही भावंरपुर के बाकी सभी लोग दौड़ते हुए नदी किनारे चले आये। जिसमे बूढ़े, बच्चे सभी शामिल थे। और सभी वहां खुशी मनाने लगे। ये खबर जैसे ही आसपास के गांव में पहुंची तो ग्राम महाराजपुर, रमीपुर, कछरियनपुर और ग्राम करतल तक से ग्रामीणों की भीड़ आने लगी। और वहां बुंदेलखंड की सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा जीवित हो उठी। सभी गांव से आये हुए लोग अपने साथ आटा-दाल, सब्जी आदि लेकर के खाना बनाने जा समान लेकर आये थे। बुंदेली परंपरा के अनुसार जो भी लोग आते हैं वे श्रम दानियों के साथ श्रम दान करते हैं। वहीं नदी के किनारे सुबह और शाम सामूहिक रसोई बनती है और उपस्थित सभी लोग श्रम दानियों के साथ सह भोज करते हैं। इस दौरान गांव-गांव की कीर्तन मंडलियां उपस्थित लोगों का मनोरंजन करती हैं। घरार नदी में ये श्रम दान का सिलसिला पिछले दस दिन से लगातार चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा। जिसकी ग्राम भावंरपुर के अमीर किसानों ने इन सभी 53 प्रवासी श्रमिकों को एक-एक बीघा जमीन फ्री देने की तथा एक-एक बीघा जमीन बटाई पे देने की घोषणा की है। प्रवासी मजदूरों का कहना है कि घरार नदी में पानी आ जाने के कारण वे अब मिली हुई जमीन पर पहले धान लगाएंगे। धान की फसल लेने के बाद गेहूं की फसल करेंगे। इसके अलावा वे बकरी पालन भी करेंगे तथा मजदूरों के लिए एक अन्न बैंक भी बनाएंगे। और इसके माध्यम से वे अपनी आर्थिक स्थिति ऐसी मजबूत करेंगे कि उन्हें रोजी-रोटी के लिए पलायन कर परदेश न जाना पड़े।
जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. संजय सिंह तथा राजा भैया ने कल सभी प्रवासी और श्रम दानी मजदूरों को खाद्यान किट भेंट की। इस किट में दस किलो गेहूं, पांच किलो चावल, पांच किलो अरहर की दाल तथा एक लीटर सरसों के तेल की बोतल शामिल है। इस दौरान डॉ. संजय सिंह और राजा भैया ने सभी प्रवासी मजदूरों को हर तरह से सहयोग करने की बात कही। इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार अशोक निगम, ओम तिवारी सहित तमाम कलम के धनी पत्रकार मजदूरों के श्रम दान का कवरेज करने के लिए आये थे।