बचपन की शरारत में ऐसा गुण सीखा कि मालामाल हो गई राधिका

उसकी सजाई मेंहदी से खुश हो जाती नव वधुएँ
माँ ने सिखाया और माँ से ही दो कदम आगे निकल गई उनकी बेटी
अनिल शर्मा+संजय श्रीवास्तव+डॉ. राकेश द्विवेदी
उरई। बचपन की शरारत राधिका को ऐसी फली कि उसे मालामाल कर दिया। मेंहदी और ड्राइंग में खूब निपुण हो गई। नव वधुओं को उसके स्वप्न जैसा आकार देकर खुशी- खुशी मुँह मांगी कीमत हासिल हो जाती है। माँ से ही सीखा और अब माँ से ही आगे आकर खड़ी दिखती है।
राधिका कौशल बचपन में जरूरत से कहीं ज्यादा शैतान थी। कई बार उसे संभालते- संभालते माँ पूजा को रोना तक आ जाता था। आयरन की कमी से यह बच्ची दीवारों के चूने को चाटने को एकांत को खोजती थी। पिता मनोज कौशल को इसकी चिंता नहीं थी पर माँ इसकी फिक्र कर- करके दुबली हुईं जा रही थी। फिर उन्हें एक दिन आइडिया सूझा। राधिका को सूखे कलर थमा दिए गए। दीवारें तो लाल- हरी हो गईं पर अब उनकी बच्ची चूना चाटने की अपेक्षा इसी में व्यस्त हो गई। कक्षा सात तक आते – आते वह चित्र बनाने में निपुण हो गई। स्कूल में भी उसकी तारीफों के पुल बंधने शुरू हो गए।इससे उसका हौसला इतना बढ़ा कि वह इसी दिशा के सफर की मुसाफिर हो गई। बड़े सलीकेदार और आकर्षक चित्रात्मक फूल बनाने लगी। इसके बाद उन्हीं फूलों को कपड़ों में उकेरकर उनकी कढाई की जाने लगी। बेटी की रुचि बढ़ते देख माँ अब खुश थी। वह तो पहले से ही इन विधाओं में माहिर थीं। यह गुण उन्होंने अपनी माँ से सीखा और यही सारे गुण वह अपनी बेटी में उतार देना चाहती थीं। राधिका की जब समझ बढ़ी तो वह मेंहदी रचाने के गुण की ओर उन्मुख हुई। ये क्या ? इस काबिलियत में तो उसने अपनी माँ को भी पीछे छोड़ दिया। शादी के दौरान उसने जब नव वधुओं को मेंहदी से संवारना शुरू किया तो उनके हाथ – पैरों में खूबसूरती की फुहारें पड़ने लगती। राधिका को पैसा तो मिलता ही पर उम्मीदों से कहीं अधिक सुंदर बना देने पर मासूमियत भरी मस्कुराहट का तोहफा उनकी ओर से अलग से मिलता है। मेंहदी सजावट के प्रकार भी तो देखिए- अरेबिश मेंहदी, इंडो- वेस्टर्न मेंहदी,ब्राइडल मेंहदी और पाकिस्तान स्टाइल मेंहदी। जब पूछा गया कि – ये पाकिस्तानी मेंहदी भला कैसे होती है ? तब बताया गया कि इसमें बहुत घनी और छोटी डिजाइन की में मेंहदी सजाई जाती है। इस दौरान यह भी पता चला कि शादी के दिन ज्यादा आकर्षक दिखने के लिए वह कितनी तपस्या करनी पड़ती है। इसके लिए उन्हें एक ही स्थान पर 5 से 6 घंटे तक बैठना पड़ता है। पहली बार जब ब्राइडल मेंहदी लगाई गई तब तो उस युवती को 10 घंटे तक बैठना पड़ा। इस सजावट भरे कार्य के लिए राधिका को 2000 से 4500 तक रुपये मिलते हैं । कई वर्षों से इस क्षेत्र में रहने से अब वह मालामाल हो गई हैं। फिलहाल उसकी इच्छा सरकारी अफसर बनने की है पर वह अपने इस शौक को अपने भीतर हमेशा जीवित रखेगी। राधिका का कहना है कि यह बचपन से मिला है और वह अपने बचपन को हमेशा अपने पास ही रखना चाहती हूँ।