बाँदा की विषहरणी नदी~ जिसका पानी विष हरता है, रोग नाश करता है

अनिल शर्मा+ संजय श्रीवास्तव + डा राकेश द्विवेदी
● साक्षी अग्रवाल (पर्यावरण शिक्षाविद/ समीक्षक)
● बाँदा जनपद मे एक “आयुर्वेदिक नदी” की खोज हुई है, जो उपेक्षा के कारण मृत प्राय हो रही थी। “विषहरणी” नाम की इस नदी के उद्धार के लिए वर्ष 2018 मे दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकारों का एक अध्ययन दल बाँदा आया था, जिसमें “दुनिया इन दिनों” के प्रधान संपादक डाॅ सुधीर सक्सेना, “राज्यसभा टीवी चैनल” के पूर्व संपादक राजेश बादल तथा “मुक्ति चक्र” पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल आदि प्रमुख पत्रकार थे।
पत्रकारों और कुछ समाज सेवियों ने इस विषहरणी नदी के किनारे “शहीद मंगल पाण्डे” का जन्मदिन मनाया।
● इस अवसर पर विषहरणी नदी के पुनरुद्धार का सामूहिक संकल्प भी लिया गया।
● किसी समय मे बुंदेलखंड की सदानीरा रहने वाली नदियाँ ~ बेतवा, चंबल, केन, ताप्ती और क्षिप्रा आदि नदियाँ अपने उदगम स्थलों पर ही सूखी, उदास, अकेली तथा बेबसी में अपने हाल पर दम तोड़ती दिख रही हैं, लेकिन इसके बावजूद बाँदा जनपद के अतर्रा कस्बे के पास मुख्य मार्ग ( बाँदा इलाहाबाद नेशनल हाइवे ) पर अभी भी एक ऐसी नदी है, जो अपने नाम की सार्थकता को बचाए हुए है, भले ही पानी उसमे भी शून्य के बराबर है।
● यह नदी विषहरणी नदी के नाम से जानी जाती है।
● विषहरणी जिस तरह पाताल से इठलाती हुई, बुलबुलों को आकार देती हुई कुंड में साँस लेकर नाचती हुई जाती है, वह अद्भुत है।
● विषहरणी नाम क्यों पड़ा ?
क्षेत्रीय निवासियों ने अपनी गहरी खोजबीन के आधार पर अनेक तथ्यों की ओर इंगित किया और दावा किया है कि इस विषहरणी नदी के पानी के सेवन और स्नान से तमाम व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। आज भी दूर दूर से तमाम बीमार लोग आते हैं और स्वस्थ होकर लौटते हैं।
अनेक एमबीबीएस डॉक्टर विषहरणी नदी के पानी के चमत्कार से चकित हैं।
● दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकारों के उपरोक्त अध्ययन दल ने वहाँ पहुँच कर विभिन्न तरीकों से इस विषहरणी नदी और इसकी व्याधि निवारण क्षमता का अध्ययन किया है।
● अध्ययन दल के अनुसार कुछ कारण तो स्पष्ट हैं, जैसे~ इस विषहरणी नदी के उदगम स्थल के चारों ओर नीम, पीपल, महुआ तथा बरगद के पेड़ों की जड़ें एक दूसरे से लिपट कर जैसे किलोलें करती हैं और अपने वृक्षों के औषधीय तत्वों को नदी की जलधारा मे निरंतर उड़ेलती रहतीं हैं। उस कारण से नदी का जल औषधीय गुणों से परिपूर्ण रहता है।
● आयुर्वेद में तो वैसे भी इन औषधीय वृक्षों का विस्तार से वर्णन है।
● हज़ार साल पहले राजा भोज के ग्रन्थ “जलमंगल” में भोज ने विभिन्न औषधीय वृक्षों की जड़ों के आस पास के जल स्रोतों से निकल रहे जल से बीमारियों के इलाज का विस्तृत ब्यौरा लिखा है, दुर्भाग्य से अब इस ग्रंथ की प्रतियाँ उपलब्ध नहीं हैं। हाँ अध्ययन दल के एक पत्रकार राजेश बादल जी के पास अलबत्ता उसके कुछ अध्याय सुरक्षित हैं।
● महात्मा गाँधी ने अपनी आत्मकथा में जल चिकित्सा का विस्तार से हवाला दिया है। उनके एक बेटे की हालत जब बेहद बिगड़ी, तो डॉक्टरों ने उसे अंडा और मछली खाने की सलाह दी । गाँधी का मन न माना। उन्होंने अपने रिस्क पर बेटे की जल चिकित्सा शुरू कर दी। एक महीने में ही बीमारी जड़ से जाती रही। डॉक्टर यह देखकर दंग रह गए।
● हाँ! तो बात हो रही थी विषहरणी नदी की, जो एक पतले से नाले के रूप में रह गयी थी। अंततः ग्राम प्रधान और क्षेत्रीय जनता की ललकार का सभी ने स्वागत किया और तय किया कि यदि इसकी विधिवत साफ सफाई करा दी जाए, तो नदी को पुनर्जीवित होते देर नहीं लगेगी। शासन प्रशासन यदि मनरेगा योजना में इस नदी को शामिल कर ले, तो स्थानीय गाँव वाले भी श्रमदान करने को तैयार हैं।
● संभवतः बुंदेलखंड में ही नहीं, पूरे भारतवर्ष में यह अकेला ऐसा स्थान है, जहाँ पिछले 100 वर्षों से पाताल से निकलीं जलधाराएं एक आयुर्वेदिक नदी के रूप में प्रवाहित होती रहीं हैं। इस विषहरणी नदी के जल मे स्नान करने और इसका जल पीने से चर्म रोगी, कुष्ठ रोगी, दमा के रोगी और टीबी तथा कैंसर तक के मरीज स्वस्थ होते रहे हैं। आस पास के इलाके के अलावा बहुत दूर दूर से भी लोग उपचार के लिए आते रहे हैं।
लेकिन पिछले चार वर्षों में यह आयुर्वेदिक नदी सूख कर काँटा हो गयी और खुद अपने इलाज के लिए दूसरों की मोहताज हो गयी। पाताल तोड़ कर निकलने वाली लगभग सभी जलधाराएं बंद हो गयीं, सिर्फ एक बहुत पतली सी जलधारा संकेत मात्र रह गयी थी।
● इस अद्भुत नदी का करुण क्रंदन संवेदनशील पत्रकारों तक पहुँचा, तो उन्होंने क्षेत्रीय जनता को जागरूक किया और फिर इस जागरूक जनता ने सरकारी चौखटों पर अपना सर पटका, तमाम अधिकारियों के दरवाजों पर दस्तक दी, लेकिन नतीजा ? वही ढाक के तीन पात। तीन चार वर्ष भटकने के बाद उन्होंने स्थानीय लोगों ने अड़ोस पड़ोस की जनता को जागरूक किया, प्रेरित और उत्साहित किया, उन्हे श्रमदान के लिए तैयार किया, इस अमूल्य धरोहर के महत्व को बार बार समझाया। लोगों मे चेतना का संचार हुआ और फिर एक दिन तत्कालीन सांसद भैरौं प्रसाद मिश्रा, अतर्रा के तमाम पत्रकारों तथा स्थानीय गाँव वालों को उस स्थल पर आमंत्रित किया और सामुदायिक श्रमदान का श्रीगणेश कर दिया। सभी ने फावड़ा कुदाल लेकर खुदाई शुरू कर दी। तसलों मे खुदाई की मिट्टी भर भर कर दूर ले जाकर फेंकी और नदी के उद्गम स्थल को साफ करना शुरू कर दिया। देखते-देखते विलुप्त हो चुकीं सात जलधाराएँ पाँच दिनों में ही फूट पड़ीं ~ पाताल का स्वचछ निर्मल नीर अपनी खिलखिलाहट के साथ सभी श्रमदानियों को अपनी बाँहों मे समेटने को आतुर और व्याकुल दिख रहा था। दूर दूर तक ढोल नगाड़े बज रहे थे ~ इन नगाड़ों की टंकार शासन प्रशासन तक पहुँच गयी।
● मंडल आयुक्त, जिलाधिकारी व दर्जनों अधिकारी इस चमत्कार को देखने आने लगे। जल पुरुष के रूप में विख्यात महेन्द्र मोदी ( तत्कालीन पुलिस महानिदेशक) लखनऊ से इस अद्भुत दृश्य और अनोखी नदी को देखने आ गये और बस यहीं से नदी पर सरकारी कृपा बरसना शुरू हो गयी। कमिश्नर और जिलाधिकारी के आदेशों द्वारा इस नदी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की रूपरेखा नरैनी के बीडीओ द्वारा तैयार करके मनरेगा योजना के अंतर्गत काम भी शुरू हो गया।
● शासन प्रशासन ने देर से सही, अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझकर एक मृतप्राय उस नदी को नया जीवन देने का संकल्प ले लिया, जिसे जिलाने के लिए न केवल सांसद ने फावड़ा उठाया, तसला से मिट्टी फेंकी, बल्कि खबर लिखने वाले पत्रकारों ने भी फावड़ा चलाया, तसले से मिट्टी फेंकी, निस्वार्थ भाव से श्रमदान किया और स्थानीय नागरिकों का उत्साह बढ़ाया हर संभव मदद देने की बात कही। इस क्रम मे राष्ट्रीय सहारा के संवाददाता अर्जुन मिश्र, अमर उजाला के मृत्युंजय द्विवेदी, दैनिक जागरण के राजेश तिवारी, हिंदुस्तान समाचार पत्र के मुन्ना द्विवेदी, दैनिक जागरण कानपुर के बिहारी दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार राजाराम तिवारी ने श्रमदान करके एक अतुल्य उदाहरण पेश किया है। ग्राम प्रधान प्रतिनिधि रज्जू सिंह, दिव्यांग विश्वविद्यालय के चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर सचिन उपाध्याय, विशेष नारायण मिश्र चित्रकूट, राजेश सिंह नंदना, राजा शिवहरे, पंडित रामस्वरूप महाविद्यालय के प्रबंधक दिनेश उपाध्याय, चंद्र शेखर पांडे महाविद्यालय अतर्रा के प्रबंधक बच्चा पांडे, हनुमान मंदिर के महंत रामगिरी, रामभरोसा पांडे, राम प्रकाश गर्ग, राम प्रबंध पांडे, राज नारायण सिंह, रामाकांत, रामराजा गौतम, राम प्रकाश त्रिपाठी, ओमप्रकाश शिवहरे, राजा बाबू झा, भोला प्रसाद, अनिल वर्मा, मलखान सिंह, संजय सिंह, विश्वनाथ गर्ग, राम अवतार गौतम, विजय वर्मा पूर्व प्रधान, नत्थू यादव मट्ठा वाला, बलराम सिंह खंगार, श्रीमती कमला शिवहरे सहित करीब 100 लोगों ने 3 दिन तक स्वेच्छा से श्रमदान कर जल संरक्षण के क्षेत्र में इतिहास रचा दिया।
● जल संरक्षण के क्षेत्र में प्रत्यक्ष जमीनी सतह से पाताल गंगा का पानी निकलना और एक नई धारा का प्रकट होना एक सामुदायिक उपलब्धि है। जल संरक्षण के क्षेत्र में ऐसा मानना है कि प्राणी और प्रकृति की कल्पना जल के बिना संभव नहीं है।
पृथ्वी में जितने भी जीव हैं, उनका जीवन जल पर निर्भर है। शरीर में, पेड़ में, फलों में, अनाजों में, पत्तों में, जो स्वाद है, रस है, वह सब जल है।और इसके बिना सब कुछ सूना है। जल ही जीवन है, पानी में सारे देवता रहते हैं, वेदों में जल को देवता माना है। हमारे इस सामूहिक प्रयास को राष्ट्रीय मीडिया ने, स्थानीय जनप्रतिनिधियों, वरिष्ठ अधिकारियों ने, जिस तरीके से स्वीकार किया है, सहयोग किया है, उत्साह बढ़ाया है, हम उनके आभारी हैं। अति शीघ्र एक बड़ी योजना बनाकर स्थानीय नागरिकों के साथ बैठक कर सामूहिक सर्वोदय विचारधारा पर जल संरक्षण के क्षेत्र में प्रयास किए जाएंगे। यदि इस गाँव में सामूहिक प्रयास से पातालगंगा निकल सकती है तो अन्य गांव में क्यों नहीं ?”
● बताते हैं कि अतर्रा की इस भूमि पर आचार्य विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन की वृहद रूपरेखा तैयार की थी तथा देश के जाने-माने समाजवादी जयप्रकाश नारायण ने यहीं पर भूदान आंदोलन के लिए अपना जीवन दान दिया था। ग्रामीणों ने छोटा सा प्रयास किया। यह प्रयास बड़ा नहीं है। इससे पूर्व भी इस कुंड की सफाई और जल संरक्षण के लिए कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उच्च अधिकारियों को लिखा पढ़ी थी, लेकिन 4 वर्षों तक सरकार अनसुनी करती रही, लेकिन 15-85 वर्ष की उम्र के लोगों के श्रमदान ने सरकार को जगा दिया। अब उस स्थल पर अंतर्राष्ट्रीय महत्व का पर्यटन स्थल बनाने की योजना विचाराधीन है।
● इस आयुर्वेदिक विषहरणी नदी को रक्षण संरक्षण देकर हम मनुष्य और प्रकृति के साथ न्याय कर सकते हैं।
संजय श्रीवास्तव-प्रधानसम्पादक एवम स्वत्वाधिकारी, अनिल शर्मा- निदेशक, डॉ. राकेश द्विवेदी- सम्पादक, शिवम श्रीवास्तव- जी.एम.
सुझाव एवम शिकायत- प्रधानसम्पादक 9415055318(W), 8887963126