ब्राह्मण वोटों को लेकर भाजपा राम और सपा, बसपा परशुराम के सहारे

जो भी राजनैतिक दल ब्राह्मण वोटों का ध्रुवीकरण कर लेगा उसका असर बिहार, बंगाल और उप्र के विधानसभा चुनाव में पड़ेगा

सबसे पहले बसपा सुप्रीमो मायावती ने माफिया डान विकास दुबे और उसके परिजनों का आधार बनाकर ब्राह्मणों के मतों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की

इसके बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेष यादव ने भगवान परशुराम की देश् में सबसे ऊची मूर्ति लगाने की घोषणा की और ब्राह्मणों केा आकर्षित किया

इससे बौखलाकर मायावती ने भी भगवान परशुराम की ऊची मूर्ति लगाने की बात कही

भाजपा और कांग्रेस अपने ब्राह्मण मतों की सेंधमारी से परेशान

उप्र में 9 प्रतिशत, बिहार में 6 और बंगाल में 5 प्रतिशत हैं ब्राह्मण मतदाता

अनिल शर्मा़+संजय श्रीवास्तव़+डा0 राकेश द्विवेदी

दिल्ली। ब्राह्मण मतों के ध्रुवीकरण को लेकर बसपा एवं सपा अब आमने सामने आ गए हैं। इन वोटों का यदि किसी दल में ध्रुवीकरण हो जाता है। तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा और कांग्रेस को होने वाला है। क्योंकि उप्र में ब्राह्मण मतदाताओं का प्रतिशत 9, बिहार में 6 और बंगाल में 5 है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा और कांग्रेस को है।
पिछले 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनाव में ब्राह्मण मतदाताओं का सबसे ज्यादा वोट भाजपा के पक्ष में गया था। इसी तरह उप्र के बीेते 2017 के विधानसभा चुनाव में बिहार विधानसभा चुनाव में, बंगाल विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों का काफी वोट भाजपा को मिला था। हालांकि राजस्थान और मप्र के चुनाव में पहली पसन्द कांग्रेस और दूसरी पसन्द भाजपा रही है। इतना तय है कि अगर ब्राह्मण मतदाताओं के वोटों का ध्रुवीकरण होता है, तो इसका असर आने वाले 2020 के विधानसभा चुनाव में, बंगाल विधानसभा चुनाव में तथा 2022 में उप्र के विधानसभा चुनाव में दिखाई पड़ेगा। ब्राह्मण वोटों के ध्रुवीकरण की पहल इस वर्ष देश में सबसे पहले अगर किसी ने शुरू की है तो वह बसपा सुप्रीमो मायावती हैं।
उन्होंने कानपुर देहात जिले के ग्राम बिकरू निवासी कुख्यात माफिया डान, पांच लाख के इनामी विकास दुबे और उसके गैंग ने एक डीएसपी सहित आठ पुलिस कर्मियों को शहीद कर दिया था। इसके बाद एसटीएफ और पुलिस ने विकास दुबे और उसके आधा दर्जन से अधिक गुर्गों के एनकांउण्टर किए। डेढ़ दर्जन से अधिक गुर्गों और करीबी रिष्तेदारों को जेल भेजा। जिसमें कई महिलाएं भी हैं। विकास दुबे के अलावा बड़ी संख्या में जो उनके गुर्गों के एनकांउण्टर हुए और जेल भेजे गए उनमें ज्यादातर ब्राह्मण थे। इसमें सियासत का रंग भरते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने ब्राह्मणों का नाम लेकर यह बयान देकर उनका दिल जीतने की कोशिश की, कि किसी बिरादरी में यदि एक दो लोग खराब हो जाते हैं तो उससे पूरी बिरादरी को खराब नहीं माना जा सकता। इस कांड में पूरी बिरादरी को दोषी नहीं माना जा सकता। इस बयान के माध्यम से मायाबती ने पूरे देश में ब्राह्मणों को यह संदेश देने की कोशिश की कि वे उनके कष्टों में पार्टी के साथ खड़ी है।

लगभग एक महिने पहले यंग भारत ने एक एक्सक्लूसिव स्टोरी छापी थी जिसमें बताया था कि बसपा विकास दुबे की धर्मपत्नी श्रीमती ऋचा दुबे को, जो जिला पंचायत सदस्य हैं। उन्हें कानपुर देहात की रिनियां विधानसभा सीट से बसपा 2022 के होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाने जा रही है। इस खबर से सभी राजनैतिक दलों में हड़कंप मच गया था। भाजपा, सपा तथा कांग्रेस को अपने अपने वोट बैंक में सेंध लगती नजर आने लगी। उधर मायावती को अपने राजनैतिक काल में सबसे बड़ी जो चुनावी जीत मिली। वह उप्र के 2007 के विधानसभा चुनाव में मिली। जब बसपा ने ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम को आधार बनाकर चुनाव लड़ा था और उप्र की कुल 403 सीटों में से 206 सीटें सीटकर अपने बलबूते पर बसपा की सरकार बनाई थी।
वह घटना वे आज तक भूली नहीं है। वैसी जीत उन्हें दोबारा नसीब नहीं हुई है। इसलिए वे आगामी विधानसभा चुनाव 2022 में वही फार्मूला फिर से चलाने के लिए अभी से रणनीति बनाने में जुटी हुई हैं। लेकिन उनकी रणनीति से समाजवादी पार्टी को लगा कि इससे उनके ब्राह्मण वोट बैंक को नुकसान हो जाएगा। इसके चलते सपा के अध्यक्ष अखिलेष यादव ने एक सोची समझी रणनीति के तहत मायावती के बयान की काट तथा ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने के लिए भगवान परशुराम की देश में सबसे ऊची 108 फुट की मूर्ति उनकी सरकार बनने पर उप्र में लगवाने की घोषणा कर दी। अपनी रणनीति को कमजोर होते देख बसपा सुप्रीमों बौखला गईं और बसपा की सरकार आने पर भगवान परशुराम की सपा से भी ऊची मूर्ति लगवाने का बयान दे दिया। इससे सपा बसपा इस मुद्दे पर आमने सामने आ गए।
उधर सपा हाइकमान ने विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय, पूर्व कैबिनेट मंत्री मनोज कुमार पाण्डेय और अभिषेक मिश्रा को ब्राह्मण मतदाताओं को सपा की ओर खीचने के लिए रणनीति बनाने के लिए कहा। इधर बसपा सुप्रीमों मायावती और अखिलेष यादव के ब्राह्मणों को लेकर आक्रामक अभियान चलाने से भाजपा में हड़कंप मच गया है। क्यों कि चाहे लोकसभा चुनाव रहे हों, चाहे विधानसभा के चुनाव ब्राह्मणों ने एकजुटता से भाजपा को वोट दिया था। वहीं कांग्रेस नेतृत्व ने भी जिसे पिछले विधानसभा चुनाव में राजस्थान और मप्र में ब्राह्मणों के अच्छे वोट मिले थे, वह भी बसपा और सपा के अभियान से चिंतत है। क्योंकि अगर ब्राह्मण लामबंद हो गया तो बिहार बंगाल और उप्र सहित तीन राज्यों में इसका सीधा असर पड़ेगा। इसलिए सभी राजनैतिक दल ब्राह्मणों को अपने अपने पाले में लाने की जोड़तोड़ में जुट गए हैं।

संजय श्रीवास्तव-प्रधानसम्पादक एवम स्वत्वाधिकारी, अनिल शर्मा- निदेशक, डॉ. राकेश द्विवेदी- सम्पादक, शिवम श्रीवास्तव- जी.एम.

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