मध्यप्रदेश में मध्यावधि चुनाव की आहट
बीजेपी में गठबंधन टूटने के कगार पर
11 मंत्री और 22 विधानसभा टिकट से कम पर राजी नहीं हैं महाराजा
अनिल शर्मा+संजय श्रीवास्तव+डॉ. राकेश द्विवेदी
भोपाल: मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को चौथी बार मुख्यमंत्री बनवाने के लिए कांग्रेस से अपने समर्थकों के साथ टूटकर भाजपा में आए पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने का जश्न भाजपा पूरी तरह से अभी मना भी नहीं पाई थी कि श्री सिंधिया की शर्त ने की उनके समर्थक विधायकों में से 11 को शिवराज सरकार में मंत्री बनाया जाए। तथा उनके सभी समर्थक कांग्रेस के 22 विधायकों को मध्यप्रदेश में आगामी सितम्बर माह में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में भाजपा से टिकट दिए जाएं। उनकी इस जिद से भाजपा और संघ में खलबली मच गई है। और अगर वे माह अगस्त तक अपनी जिद पर अड़े रहते हैं तो फिर मध्यप्रदेश में सिंधिया और भाजपा का गठबंधन टूट जाने की पूरी संभावना है। इसके चलते मध्यप्रदेश में मध्यावधि चुनाव की भी आहत सुनाई देने लगी है।
मालूम हो कि मध्यप्रदेश में वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता आयी थी। कमल नाथ मुख्यमंत्री बने। भाजपा को मात्र 7 विधानसभा सीटें कम मिली। कांग्रेस की जहां इस विधानसभा चुनाव में कुल 114 विधानसभा सीटों में जीत मिली। वहीं भाजपा के हिस्से में मात्र 107 सीटें आयीं। एक बहुत ही रोचक तथ्य ये है कि इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत कांग्रेस के वोट प्रतिशत से ज़्यादा था। फिर भी सत्ता में कांग्रेस आयी क्योंकि उसे बसपा, सपा तथा निर्दलीय विधायको का समर्थन प्राप्त हुआ। इसके बाद ही भाजपा के शीर्ष एवं प्रांतीय नेताओ को पिछले 15 सालों से मध्यप्रदेश में लगातार मिल रही सत्ता के जाने का गम सता रहा था। बीच मे कई बार भाजपा ने रणनीति बनाकर यह कोशिश की कि वह कांग्रेस के कुछ विधायकों को तोड़कर मुख्यमंत्री कमल नाथ सरकार गिरा दे। लेकिन वह अपने मकसद में कामयाब नही हो पाई। लेकिन कमलनाथ से नाराज चल रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने केंद्रीय नेतृत्व(सोनिया गांधी, राहुल गांधी,प्रियंका गांधी) से कई बार दिल्ली जाकर बात की। लेकिन सिंधिया संतुष्ट नही हो पाए। उधर मुख्यमंत्री कमलनाथ के खासमखास और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और स्वयं कमलनाथ ने भी सिंधिया और उनके समर्थकों पर व्यंग बाण्डों की बौछार शुरू कर दी। जिससे सिंधिया और उनके समर्थक आक्रोशित हो गए। जिसका नतीजा ये हुआ सिंधिया ने मार्च महीने में भाजपा के राष्ट्रीय नेता व ग्रह मंत्री अमित शाह एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भेंट की और भाजपा ज्वाइन कर ली। इसके बाद कांग्रेस में सिंधिया गट के कमलनाथ सरकार में 6 मंत्रियों सहित 22 विधायकों ने कांग्रेस से बगावत कर दी। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उन्हें कर्नाटक की राजधानी बंगलोर में जहां भाजपा का साशन है। वहां एक रिसोर्ट में इन बागी कांग्रेसियों को पहुंचा दिया गया। इसके बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने सिंधिया समर्थक इन बागी मंत्री औऱ विधायकों को मनाने की कोशिश की लेकिन सिंधिया गट टस से मस नहीं हुआ। नतीजा ये हुआ कि विधानसभा में कांग्रेस अल्पमत में आ गयी और मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बिना फ्लोर टेस्ट कराए ही मुख्यमंत्री पद से स्तीफा दे दिया। लेकिन चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्री मंडल में सिंधिया गट के सिर्फ दो मंत्रियों क्रमशः तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को ही कैबिनेट में जगह दी। तो इससे सिंधिया खेमे में असंतोष बढ़ गया। उधर सूत्रों की माने तो सिंधिया ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के पास यह दबाव बनाया कि उनके समर्थक विधायकों में से 11 को मंत्री बनाया जाए तथा सभी उनके समर्थक विधायकों को भाजपा उपचुनाव में टिकट दे।
सिंधिया की पहचान राजनीति में एक हठी नेता के रूप में होती है। कांग्रेस में नेहरू गांधी परिवार के बाद वे दूसरे सबसे ताकतवर नेता माने जाते थे। कांग्रेस में उन्हें केंद्रीय मंत्री तथा संगठन का राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया गया। लेकिन भाजपा में उनकी हैसियत ये नहीं है। सिंधिया लगातार अपने 11 विधायकों को मंत्री बनाने तथा सभी उनके समर्थक विधायकों उपचुनाव में भाजपा से टिकट मिले इसपे अड़े हुए हैं। उधर RSS के द्वारा चम्बल संभाग में कराए गए गोपिनीय सर्वे में यह रिजल्ट निकालकर आया है कि चम्बल संभाग में कांग्रेस से जीतकर आए सिंधिया समर्थक 16 विधायकों को यदि भाजपा से उपचुनाव में टिकट दिए गए तो सिर्फ 2 विधायक जीतने की स्थिति में हैं। सर्वे के आंकलन के बाद संघ के अधिकारियों ने ये तय किया है कि अब वह हर विधानसभा क्षेत्र में व्यक्तिगत सर्वे कराएगी। इस सर्वे से निकली रिपोर्ट के आधार पर ही वह उपचुनाव में सिंधिया समर्थकों को भाजपा से टिकट देने की सोचेगी। उधर इतनी बड़ी संख्या में सिंधिया समर्थक कांग्रेसी विधायकों को भाजपा से टिकट देने की बात पर भाजपा के कैडरिस्टों में भी खासी नाराजगी फैल गयी है। अगर भाजपा नेतृत्व सिंधिया समर्थकों को इतनी बढ़ी संख्या ने चम्बल संभाग में टिकट देता है तो भाजपा के पुराने कार्यकर्ता और नेता इनके विरोध में बगावत करके चुनाव लड़ सकते हैं। इस सूचना से भाजपा और संघ का शीर्ष नेतृत्व हिला हुआ है। और संघ के शीर्ष नेतृत्व ने भाजपा के शीर्ष नेताओं को यह भी सलाह दी है कि वह सिंधिया और उनके समर्थको को स सम्मान भाजपा से विदा करने की रणनीति बनाएं। उधर अगर सिंधिया और उनके समर्थकों की बात भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने नहीं मानी तो फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया शीघ्र एक नई पार्टी बनाने की घोषणा कर सकते हैं। नई पार्टी बनते ही भाजपा का सिंधिया से गठबंधन टूट जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार अल्पमत में आ जाएगी और मध्यप्रदेश में उपचुनाव की जगह चुनाव आयोग को मध्यावधि चुनाव कराने पड़ सकते हैं।