पिछले कुछ समय में बारिश का कहर इस तरह से बेकाबू हो गया कि असम, बिहार और अब तो उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी पानी लबालब हो गया है। यहां तक तो हालत इतनी खराब हो गई कि प्रकृति के प्रकोप ने हमारे असम में पूरी तरह तहस-नहस कर डाला।
71 लोगों के मारे जाने की पुष्टि कर दी गई है। हमें जब इन खबरों के बारे में जानकारी मिलती है, तब अफसोस होता है मगर यह सब तो प्रकृति की वजह से हुआ है, जिसके लिए हम कुछ नहीं कर सकते हैं मगर देश में जो मॉब लिंचिंग हो रही है, उसका क्या?
मॉब लिंचिंग के खिलाफ हमारी चुप्पी घातक हो सकती है
प्राकृतिक आपदाएं जब भी आती हैं, तब चीज़ें हमारे हाथ में नहीं होती हैं। कुछ वक्त गुज़र जाने के बाद हम मान लेते हैं कि यह तो प्रकृति का कहर था मगर हमारे ही देश में जब किसी इंसान को भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार दिया जाए, तब हम क्यों खामोश रहते हैं? किसी को डायन समझकर गाँव वालों ने मार डाला तो कहीं किसी को चोरी के नाम पर मार दिया गया।
पिछले महीने झारखंड में एक युवक को जिस तरह पीट-पीटकर मार दिया गया, क्या किसी का दिल इतना पत्थर हो गया है कि लोग बस देखते ही रहें। हमारे यहां तो बेज़ुबान जानवरों को मारने का कानून भी सख्त है, वैसा ही कानून इनपर भी लागू हो जाए तो किसी का बेटा, भाई या कोई भी मार खाने की वजह से तो कम-से-कम नहीं मरेगा।
हिन्दू-मुस्लिम और दलित के नाम पर हत्याएं शर्मनाक
पूरे देश में बारिश की वजह से जहां तबाही मची हैं, वहीं पिछले 10 दिनों से बिहार, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में सिर्फ और सिर्फ लोगों को चोर समझकर मार दिया जा रहा है। कई जगहों पर तो जय श्रीराम ना बोलने पर मार दिया जा रहा है। यहां तक कि हिन्दू-मुस्लिम और दलित के नाम पर लोगों की हत्याएं हो रही हैं।
इनकी मानसिकता एक तुच्छ सोच को बयां करती है। सोचने की बात यह है कि कहां से आ जाते हैं ऐसी मानसिकता रखने वाले लोग? यदि हमने वक्त रहते इन चीज़ों पर विचार नहीं किया, तब वह दिन दूर नहीं जब अहिंसा बढ़ेगी और लोग सिर्फ राम के नाम पर हत्याएं करेंगे।
बात तो कुछ और होती है मगर हम जैसे लोग सिर्फ यह समझते हैं कि धर्म के नाम पर नफरत फैलाया जाता है। हम सिर्फ सोशल मीडिया पर लिख ही सकते हैं। मॉब लिंचिंग कब खत्म होगी, यह तो पता नहीं है लेकिन आशा है कि देश में एक रोज़ भाईचारे का माहौल बनेगा।
मॉब लिंचिग रोकने के कुछ ज़रूरी सुझाव
लोगों को पहले अपनी सोच बदलनी पड़ेगी।
भीड़ इकट्ठा होने से पहले ही लोग चौकन्ने हो जाएं तो हालात बिगड़ेंगे नहीं।
राम के नाम पर भीड़ को उत्तेजित नहीं किया जाए।
स्थानीय पुलिस को सख्त होना पड़ेगा।
गौरक्षा के नाम पर अहिंसा ना बढ़े।
हमें अपनी सोच को बदलने की ज़रूरत है ताकि मॉब लिंचिग के खिलाफ आवाज़ उठाने पर हमें देशद्रोही ना करार दिया जाए।
संजय श्रीवास्तव-प्रधानसम्पादक एवम स्वत्वाधिकारी, अनिल शर्मा- निदेशक, शिवम श्रीवास्तव- जी.एम.