ओडिशा हाईकोर्ट (Odisha High Court) ने गैंगरेप के एक मामले में निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें पीड़िता की अनवांटेड प्रेगनेंसी को खत्म करने की याचिका को खारिज कर दिया गया था. निचली अदालत में पीड़िता ने अपनी अनवांटेड प्रेगनेंसी को खत्म करने को लेकर एक याचिका दाखिल की थी, जिसे खारिज कर दिया गया. हाईकोर्ट ने कहा कि यह पीड़िता के व्यक्तित्व और उसके नारीत्व को गंभीर रूप से प्रभावित करता है. ओडिशा हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत को पीड़िता की अपील को बच्चे के जन्म के अधिकार से ऊपर रखना चाहिए था.
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि सामूहिक बलात्कार के बाद गर्भवती हुई 20 वर्षीय पीड़िता को मुआवजे के तौर पर 10 लाख रुपये की राशि का भुगतान किया जाए. न्यायमूर्ति एसके पाणिग्रही की पीठ ने कहा कि राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण यह सुनिश्चित करेगा कि राज्य सरकार (Odisha Government) पीड़िता को मुआवजे के रूप में 10,00,000 रुपये की राशि का भुगतान करे. हालांकि हाईकोर्ट ने गर्भावस्था को खत्म (Termination of Pregnancy) करने की इजाजत नहीं दी क्योंकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी 2021 के तहत चिकित्सीय गर्भपात की ऊपरी सीमा 14 सितंबर से 24 सप्ताह कर दी गई है, जो इससे पहले 20 सप्ताह थी.
‘डिलीवरी तक पीड़िता को उपलब्ध कराएं जरूरी सुविधाएं’ मां-बच्चे और पीड़िता के माता-पिता को ध्यान में रखते हुए, पीठ ने कटक के जिला कलेक्टर को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि पीड़िता को गर्भावस्था के शेष भाग के दौरान उचित आहार, चिकित्सा पर्यवेक्षण और आवश्यक दवाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए. अदालत ने कहा, ‘जब प्रसव का समय आए, तो बच्चे की सुरक्षित डिलीवरी के लिए उचित चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए.’
जानकारी के मुताबिक, कटक जिले के बैदेश्वर पुलिस सीमा के अंतर्गत बनिया गांव की निवासी पीड़िता 14 अप्रैल 2021 को अपने घर लौट रही थी. इसी दौरान कुछ आरोपियों ने उसे पकड़ लिया और जबरन पास के एक स्कूल में ले गए, जहां बारी-बारी से सभी ने उसके साथ बलात्कार किया. इतना ही नहीं, आरोपियों ने पकड़े जाने के डर से उसे धमकी भी दी कि अगर उसने अपने परिवार या पुलिस को इस बारे में बताया तो वह उसे जान से मार देंगे. न्यायमूर्ति एसके पाणिग्रही ने निर्णय देते हुए कहा, ‘अदालतें पीड़ितों के बचाव में आने और उनकी मानसिक पीड़ा को कम करने के लिए बाध्य है, खासकर उन मामलों में जिसके लिए फिलहाल कोई कानून नहीं है.’
संजय श्रीवास्तव-प्रधानसम्पादक एवम स्वत्वाधिकारी, अनिल शर्मा- निदेशक, शिवम श्रीवास्तव- जी.एम.