सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को आदेश दिया कि वे प्रवासी मजदूरों के राज्य व जिलावार पंजीकरण करें
राज्य सरकारों के पास यदि मजदूरों का यह डेटा होता तो न सरकार को परेशानी होती न मजदूरों को
तब राज्य सरकारें मजदूरों के डेटा के सहारे आसानी से प्रबंधन कर लेतीं और मजदूरों को सैकड़ों किलोमीटर पैदल न चलना पड़ता
आज जो कोरोना पॉजिटिव केसों की यका यक बढ़ोत्तरी हुई है वो न हुई होती
अनिल शर्मा+संजय श्रीवास्तव+डॉ. राकेश द्विवेदी
दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने लगाई द यंग भारत की खबर पर मुहर। सुप्रीम कोर्ट ने कल शुक्रवार को केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वो राज्य व जिला स्तर पर प्रवासी मजदूरों का पंजीकरण करें।
मालूम हो कि द यंग भारत ने बीती 21/05/2020 को अपने पोर्टल में ये खबर प्रमुखता से चलाई थी कि यदि गांव से लेके जिले तक प्रवासी मजदूरों के पलायन रजिस्टर बनाये जाएं। और जिला स्तर पर उनकी एक बुकलेट बनाई जाए। इसी तरह सभी जिलों को मिलाकर पूरे प्रदेश का एक ऐसा प्रवासी रजिस्टर बनाया जाए। जिसमे किस गांव से कौन कौन और कितने मजदूर बाहर रोजी रोटी के लिए पलायन करके गए हैं। इसी तरह ग्राम पंचायतों और नगर पंचायतों में वार्ड सभासद ऐसे रजिस्टर बनाये, जबकि महानगर पालिकाओं में पार्षद ऐसे रजिस्टर बनाये। उनमें मजदूर का नाम, मोबाइल नंबर तथा किस राज्य के किस शहर या महानगर में किस मिल, फैक्टरी, बिल्डर या प्रतिष्ठान में वो काम कर रहा है। उसका पता हो तथा उसको रोजगार देने वाले नियोक्ता(employer) का नाम हो। इसी तरह कोई प्रवासी मजदूर किसी राज्य के महानगर या शहर में पानी पूरी बेचने का काम करता है, या हम्माली का करता है। तो उसका विवरण भी उस रजिस्टर में होना चाहिए। ये देश की सभी राज्य सरकारों के पास प्रवासी मजदूरों का पूरा डेटा(data) होता तो लॉक डाउन लगने से पहले केंद्र सरकार के पास पूरी सूचना होती। तब लॉक डाउन के बाद जो हड़बड़ी में मजदूर अपने परिजनों के साथ पैदल भूखे प्यासे हाइवे पर सैकड़ों मील पैदल चले, वो न चलना पड़ा होता। होता तब यह कि केंद्र सरकार प्रत्येक राज्य का पहले से ही प्रवासी मजदूरों का या तो डेटा मंगवा लेती या राज्य सरकारों को उन राज्य के मुख्यमंत्रियों से आपस मे संपर्क करवाके उन्हें प्रवासी मजदूरों का डेटा उपलब्ध करवा देती। तब केंद्र सरकार सभी राज्य सरकारों को लॉक डाउन के पहले प्रवासी मजदूरों के लिए यह निर्देश जारी करवा देती कि जो मजदूर जिस मिल, फैक्ट्री, कम्पनी, बिल्डर या प्राइवेट प्रतिष्ठान में काम कर रहा है। उसे कोई कोई भी नियोक्ता कोरोना काल तक नौकरी से नहीं निकालेगा और उसे प्रतिमाह के हिसाब से वेतन या दिहाड़ी देगा। इसके अलावा केंद्र सरकार ने कोरोना काल के लिए प्रत्येक प्रवासी मजदूर को जैसा अभी दिया जा रहा है उसी राज्य मे वहां का प्रशासन प्रति मजदूर या उसका परिवार है तो प्रति यूनिट के हिसाब से 3 किलो गेंहू और 7 किलो चावल बिल्कुल मुफ्त देता जबतक कोरोना महामारी चल रही है। इसके अलावा केंद्र सरकार सभी राज्य सरकारों को यह निर्देश देती कि कोई नियोक्ता न तो अपने मजदूर को काम से निकालेगा और कोरोना काल मे उसे पूरा वेतन और पूरी दिहाड़ी देगा। इसके अलावा कोई भी मकान मालिक किसी प्रवासी मजदूर से कोरोना काल मे कमरा खाली नहीं करवाएगा। यदि ऐसा कोई करेगा तो चाहे नियोक्ता हो या मकान मालिक उसके खिलाफ कठोर कानूनी कार्यवाही उक्त राज्य करेगा। यदि ऐसा हो जाता तो करोड़ों प्रवासी मजदूरों को विभिन्न राज्यों से महानगरों और शहरों से अपने गांव घर वापिस न आना पड़ता और न ही इतना कष्ट उठाना पड़ता। इतनी बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर सोशल डिस्टेंसिंग को तोड़ते हुए अपने गांव घर लौटे हैं। इसके कारण यका यक कोरोना पॉजिटिव केसों कि अचानक जो बाढ़ सी आ गयी है वो न आयी होती।
संजय श्रीवास्तव-प्रधानसम्पादक एवम स्वत्वाधिकारी, अनिल शर्मा- निदेशक, डॉ. राकेश द्विवेदी- सम्पादक, शिवम श्रीवास्तव- जी.एम.