भारतीय जनता पार्टी ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 2017 में कुल 325 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसमें से भाजपा की 311 सीटें थी. उत्तर प्रदेश की विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 403 हैं. ऐसे में बड़ी संख्या में ऐसी सीटें हैं, जिनको इस बार भाजपा जीतने की कोशिश कर रही है. मेरठ, सरेनी, रायबरेली, इटावा की कुछ सीटों के अलावा सीतापुर में सिधौली, लखनऊ की मोहनलालगंज ऐसी ही कुछ विधानसभा सीट हैं, जहां भाजपा की हार हुई थी.
इन सीटों पर जीत भाजपा को इसलिए भी आसान लग रही है क्योंकि यहां के विधायकों से कमोवेश जनता नाराज है. इसका लाभ भाजपा को साफ नजर आ रहा है. लहर के बावजूद भाजपा के प्रत्याशी इन सीटों पर क्यों नहीं जीत पाए थे. उन आंकड़ों की पड़ताल महामंत्री संगठन सुनील बंसल के स्तर पर की जा रही है. माना जा रहा है कि यह तथ्य जातिपरक भी हो सकते हैं. कहीं-कहीं हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण और स्थानीय प्रत्याशी के प्रति लोगों की नाराजगी का विषय भी एक बड़ा पहलू हो सकता है. इस पर भाजपा विचार करके यहां से जिताऊ प्रत्याशियों की तलाश कर रही है.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि भाजपा हारी हुई सीटों पर इसलिए भी ज्यादा जोर दे रही है, क्योंकि यह एक तरह का डैमेज कंट्रोल है. भाजपा को आशंका है कि उसके 70 से 80 विधायक हारने की हालत में हैं. इस स्थिति में अगर भाजपा अपनी हारी हुई 80 से अधिक सीटों पर जोर दे तो वह उनको जीत सकती है.
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