90 वर्षीय जर्जर वृद्ध के साथ दुष्कर्म, क्या यही देश मे चरित्र के गिरावट की हद है या और जलालत अभी देखना बाकी है?

दक्षिणी दिल्ली के बाहरी इलाके के इस गांव में एक अजीब सी उदासी है। महिलाओं के चेहरे पर खौफ साफ नजर आ रहा है। एक पुराने घर में गांव की सबसे बुजुर्ग महिला को घेर कर बैठी महिलाएं उनके दुख को बांटने की कोशिश कर रही हैं। मैं जैसे ही आगे बढ़ती हूं, वो बुजुर्ग महिला उठकर मुझे गले लगा लेती है। कांपते हुए हाथ सर पर फेरकर दुआ देती है।
झुकी हुई कमर, सूजा हुआ चेहरा, चोट के नीले निशान, सूखे होंठ, कांपते हाथ, जख्मों को छुपाने की नाकाम कोशिश करती झुर्रियां और रो-रोकर सूख गई आंखें। उस बुजुर्ग के आंसू मेरी आंखों में उतर आए।
किसी तरह अपनी सिसकियों को संभालकर वो कहती हैं, ‘उस दरिंदे को फांसी टूटनी चाहिए, इस उम्र में मेरा ये हाल किया है। 90 साल की हो गई, कभी बुखार नहीं चढ़ा, बीमार नहीं पड़ी, कभी गोली-दवाई नहीं खाई, अब इस उम्र में मेरे साथ ये दरिंदगी की गई है, अस्पताल, थाने, अदालत के चक्कर लगाने पड़ेंगे। उस दरिंदे को फांसी टूटेगी तो मुझे सब्र आएगा।’
‘भगवान ने मुझे बहुत मज़बूत दिल दिया था, कभी परेशान नहीं हुई। उसने 90 साल की उम्र में मेरा करम फोड़ दिया। इतना सताया कि मेरा दिल चकनाचूर हो गया। एक पल सब्र नहीं आ रहा।’ ‘मेरे चेहरे पर घूंसे ही घूंसे मारे, दांत नहीं है, मसूड़े फोड़ दिए। रोटी भी नहीं खा पा रही हूं। बूढ़ी आत्मा के साथ ये परेशानी करी है, उसे फांसी ही होनी चाहिए।’
संजय श्रीवास्तव-प्रधानसम्पादक एवम स्वत्वाधिकारी, अनिल शर्मा- निदेशक, डॉ. राकेश द्विवेदी- सम्पादक, शिवम श्रीवास्तव- जी.एम.
सुझाव एवम शिकायत- प्रधानसम्पादक 9415055318(W), 8887963126